Header Ads Widget

Responsive Advertisement

नन्हीं कली



लगता है जवानी की देहलीज़ पर कदम रख दिया,
मेरी बेटी को अब हर कोई ताकने लगा है |
सुनसां पड़ी गली हमारी में चहलकदमी बढ़ गई,
जिसे देखो गली के चक्कर काटने लगा है |

खा जाने वाली नजरें दौड़ने लगी हैं घर की तरफ,
आता जाता हर कोई घर में झाँकने लगा है |
हैरान हूँ कि बूढों में भी जवानी ज़ोर मारने लगी है,
खंडहर होती ईमारत कोई संवारने लगा है |

किस किस से महफूज़ रखूं अपनी नन्हीं कली को,  
गैर क्या पाना भी बन भंवरा मंडराने लगा है |
माथे पर बल पढने ले समझ नजाकत ऐ वक़्त,
एक अनजाना सा दर अब सताने लगा है |

काँप जाती है रूह मेरी पढ़कर खबरें अखबार में,
मन मेरा क्रोधाग्नि में जलने लगा है |
अब समझी मैं माँ का दर्द जब माँ बनी बेटी की,

नज़रिया “सुलक्षणा” का बदलने लगा है |
















डॉ सुलक्षणा अहलावत
मो० नं० : 94167-20180 (W)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ