पहाड़ रोता छोड़ आए हो
अपने अरमानों की खातिर,
तुम रिश्ते तोड़ आए हो।
झूठी खुशियों की खातिर,
पहाड़ रोता छोड़ आए हो।
याद आते तो होंगे,
वो बांज, वो बुरांस।
जिनको जंगल में,
अकेला छोड़ आए हो।
झूठी खुशियों की खातिर,
पहाड़ रोता छोड़ आए हो।
नथुनों में कभी आती तो होगी,
हिमालय की सुगंध।
वो मलय शीतल पवन,
जो तुम भूल आए हो।
झूठी खुशियों की खातिर,
पहाड़ रोता छोड़ आए हो।
सुबकता होगा पुश्तैनी मकान,
जो कभी घर था।
तुम उसको धीमे-धीमे,
मरता छोड़ आए हो।
झूठी खुशियों की खातिर,
पहाड़ रोता छोड़ आए हो।
मन में बहते तो होंगे,
वो धारे और गदेरे।
रवानी जिनकी तुम,
मंझधार में छोड़ आए हो।
झूठी खुशियों की खातिर,
पहाड़ रोता छोड़ आए हो।
वो भड्डू की दाल,
खुशबू मंडुए की रोटी की।
भाषा-बोली भी भूले तुम,
सब कुछ हार आए हो।
झूठी खुशियों की खातिर,
पहाड़ रोता छोड़ आए हो।
क्या याद हैं तुमको वो,
स्वर्णिम सुबहें और मस्त शामें।
तुम कौड़ियों के भाव,
खज़ाना बेच आए हो।
झूठी खुशियों की खातिर,
पहाड़ रोता छोड़ आए हो।
वो अब भी खड़ा है,
वहीं तुम्हारे इंतजार में।
तुम जहां उसको,
अकेला छोड़ आए हो।
झूठी खुशियों की खातिर,
पहाड़ रोता छोड़ आए हो।
0 टिप्पणियाँ