पल भर में
लहू की एक नद्दी में गिरा था
हथेलियों के बल मुश्किल से
अभी-अभी उठा-
माथे और कनपटियों से
अब भी ख़ून टपकता है
हाथ लटकता है झोली में
एक टाँग गोली से जख़्मी
मुश्किल से वह
बग़ल में बैसाखी के सहारे
अपनी कमर सीधी करता है
और खड़ा होने की कोशिश करता है।
जयंत परमार
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